खास आपके लिये लाये है नवरात्री (शक्तीकी) उपाय और उपासना

नवरात्री मध्ये विनाखर्च काय उपाय व उपासना करता येतील हे आपण जाणून घेऊया या लेखाद्वारे . . हा लेख मुद्दामून सर्वाना समजण्यासाठी हिंदीत लिहित आहे .

नवरात्री मूल प्रकृति आदि शक्ति की उपासना का पर्व है, प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नवग्रह, नवनिद्धि, नौ शक्तियों की नवधा का पर्व है नवरात्र, जीवन से जुड़े नवरंग को निखरता है नवरात्र पर्वशास्त्रो के अनुसार जीवन के सभी क्षेत्रो में सफलता प्राप्त करने के लिए माँ दुर्गा की (शक्तीकी) आराधना परम सुखदायी तथा महत्वपूर्ण ओंर नवरात्रि माँ दुर्गा को अत्यंत प्रिय है ।शास्त्रो में वर्णित है कि नवरात्रि में माँ दुर्गा अपने भक्तो के सभी कष्ट दूर करती है। ऐसा माना जाता है कि नवरात्र में किये गए सात्विक उपाय शीघ्र फलदायी होते है। नवरात्री मै शक्तीकी उपासना करनेसे १०० गुना जादा फल मिलता है | नवरात्र में कुछ अचूक उपायों को करके भक्तो की सभी मनोकामनाएँ निश्चय ही पूर्ण होती है। यहाँ पर ऐसे ही नवरात्रि के अचूक उपाय तथा मंत्र स्तोत्र दिए जा रहे है जिन्हें पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास से करने से जीवन में सुखो का वास रहेगा एवम आपकी अध्यात्मिक शक्ती कही गुना बढ सकती है ।

१ प्रथमं शैलपुत्री: पहली दुर्गा चंद्र स्वरूपा देवी शैलपुत्री. शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मी माँ दुर्गा के इस रूप का नाम शैलपुत्री है।
नीचे दिये हुवे मंत्र का १०८ बार या फिर १००८ बार स्मरण करे।
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥ || ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ||
उपाय: शैलपुत्री मा का स्मरण करके सफेद कनेर के फूल चढ़ाएं।

2 द्वितीयं ब्रह्मचारिणी: दूसरी दुर्गा मंगल स्वरूपा देवी ब्रह्मचारिणी |‘ब्रहाचारिणी’ माँ पार्वती के जीवन काल का वो समय था जब वे भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या कर रही थी। तपस्या के प्रथम चरण में उन्होंने केवल फलों का सेवन किया फिर बेल पत्र और अंत में निराहार रहकर कई वर्षो तक तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बाएँ हाथ में कमण्डल है।
नीचे दिये हुवे मंत्र का १०८ बार या फिर १००८ बार स्मरण करे ।
दधानाकरपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥ || ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ||
उपाय: मां ब्रह्मचारिणी को कमल का फुल चढ़ाएं।

३ त्रीतीयं चन्द्रघण्टा: तीसरी दुर्गा शुक्र स्वरूपा देवी चन्द्रघण्टा शाश्वत जीवन में ये स्वरुप उस नवयोवना का है जिसमें प्रेम का भाव जागृत है । अपने मस्तक पर घंटे के आकार के अर्धचन्द्र को धारण करने के कारण माँ "चंद्रघंटा" नाम से पुकारी जाती हैं। अपने वाहन सिंह पर सवार माँ का यह स्वरुप युद्ध व दुष्टों का नाश करने के लिए तत्पर रहता है| शत्रू का नाश करती है मा चंद्रघंटा |
नीचे दिये हुवे मंत्र का १०८ बार या फिर १००८ बार स्मरण करे।
पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यां चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
उपाय:मां चन्द्रघण्टा को चमेली का फुल ऑर अत्तर चढ़ाएं।

४ चतुर्थ कूष्मांडा: दचौथी दुर्गा सूर्य स्वरूपा देवी कूष्माडा अपनी मंद हंसी से ब्रह्माण्ड का निर्माण करने वाली "माँ कूष्मांडा" देवी दुर्गा का चौथा स्वरुप हैं । माँ कुष्मांडा की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है। मान्यतानुसार सिंह पर सवार माँ कूष्मांडा सूर्यलोक में वास करती हैं, जो क्षमता किसी अन्य देवी देवता में नहीं है। माँ कूष्मांडा अष्टभुजा धारी हैं और अस्त्र- शस्त्र के साथ माँ के एकहाथ में अमृत कलश भी है।
नीचे दिये हुवे मंत्र का १०८ बार या फिर १००८ बार स्मरण करे।
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
उपाय: मां कूष्मांडा मा को कोहळा चढाये तथा लाल रंग का फुल फुल अर्पित करे ।

५ पंचमम स्कंदमाता: पालन शक्ति का संचरण करती पांचवीं दुर्गा स्वरूपा देवी स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं जिनमें से माता ने अपने दो हाथों में कमल का फूल पकड़ा हुआ है। उनकी एक भुजा ऊपर की ओर उठी हुई है जिससे वह भक्तों को आशीर्वाद देती हैं तथा एक हाथ से उन्होंने गोद में बैठे अपने पुत्र स्कंद को पकड़ा हुआ है। इनका वाहन सिंह है।
नीचे दिये हुवे मंत्र का १०८ बार या फिर १००८ बार स्मरण करे।
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
उपाय:स्कंदमाता पर मेहंदी अर्पित करके वो अपने हातोमे लगाये मा का प्रसाद समजकरलगाये एवम कमल का फुल चढाये ।

६ षष्टम कात्यायनी: षष्टम दुर्गा बृहस्पति रूपा देवी कात्यायनी है. दिव्य रुपा कात्यायनी देवी का शरीर सोने के समाना चमकीला है। चार भुजा धारी माँ कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिये हुए हैं। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। इनका वाहन सिंह हैं। देवी कात्यायनी के नाम और जन्म से जुड़ी एक कथा प्रसिद्ध है।
कथा दे रहा हू। विस्तारसे अगले लेख में होगी | क्यों पड़ा देवी का नाम कात्यायनी
एक कथा के अनुसार एक वन में कत नाम के एक महर्षि थे उनका एक पुत्र था जिसका नाम कात्य रखा गया। इसके पश्चात कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने जन्म लिया। उनकी कोई संतान नहीं थी। मां भगवती को पुत्री के रूप में पाने की इच्छा रखते हुए उन्होंने पराम्बा की कठोर तपस्या की।
महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया। कुछ समय बीतने के बाद राक्षस महिषासुर का अत्याचार अत्यधिक बढ़ गया। तब त्रिदेवों के तेज से एक कन्या ने जन्म लिया और उसका वध कर दिया। कात्य गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया।
नीचे दिये हुवे मंत्र का १०८ बार या फिर १००८ बार स्मरण करे ।
चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना| कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि||
उपाय:मां कात्यायनी पर हलदी एवम गुलाब का फुल चढांये ।

७ सप्तम कालरात्रि: सप्तम दुर्गा शनि स्वरूपा देवी कालरात्रि दुर्गा जी का सातवां स्वरूप है। इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहते हैं। असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया था। इनकी पूजा शुभ फलदायी होने के कारण इन्हें 'शुभंकारी' भी कहते हैं।
नीचे दिये हुवे मंत्र का १०८ बार या फिर १००८ बार स्मरण करे ।
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी। वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी।।
उपाय: :मां कालरात्रि पर काले चने का भोग लगाएं तथा धोतरे का फुल अर्पित करे ।

८ अष्टम महागौरी: अष्टम दुर्गा राहू स्वरूपा देवी महागौरीके शरीर बहुत गोरा है। महागौरा के वस्त्र और अभुषण श्वेत होने के कारण उन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा गया है। महागौरा की चार भुजाएं है जिनमें से उनके दो हाथों में डमरु और त्रिशुल है तथा अन्य दो हाथ अभय और वर मुद्रा में है। इनका वाहन गाय है। इनके महागौरा नाम पड़ने की कथा कुछ इस प्रकार है।
मान्यतानुसार भगवान शिव को पाने के लिए किये गए अपने कठोर तप के कारण माँ पार्वती का रंग काला और शरीर क्षीण हो गया था, तपस्या से प्रसन्न होकर जब भगवान शिव ने माँ पार्वती का शरीर गंगाजल से धोया तो वह विद्युत प्रभा के समान गौर हो गया। इसी कारण माँ को "महागौरी" के नाम से पूजते हैं।
नीचे दिये हुवे मंत्र का १०८ बार या फिर १००८ बार स्मरण करे।
श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः। महागौरी शुभं दघान्महादेवप्रमोददा॥
उपाय:मां महागौरी पर लिली के फुल चढ़ाएं।

९ सिद्धिदात्री: नवम दुर्गा केतु स्वरूपा सिद्धिदात्री हिन्दू धर्म के पुराणों में बताया गया है कि देवी सिद्धिदात्री के चार हाथ है जिनमें वह शंख, गदा, कमल का फूल तथा चक्र धारण करे रहती हैं। यह कमल पर विराजमान रहती हैं। इनके गले में सफेद फूलों की माला तथा माथे पर तेज रहता है। इनका वाहन सिंह है। देवीपुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में देवी की शक्तियों और महिमाओं का वर्णन किया गया है।पुराणों के अनुसार देवी सिद्धिदात्री के पास अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व यह आठ सिद्धियां हैं। देवी पुराण के मुताबिक सिद्धिदात्री की उपासना करने का बाद ही शिव जी ने सिद्धियों की प्राप्ति की थी।
नीचे दिये हुवे मंत्र का १०८ बार या फिर १००८ बार स्मरण करे।
सिद्धगन्धर्वयक्षाघैरसुरैरमरैरपि।सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
उपाय:मां सिद्धीदात्री को बेल एवं गुरहल का फूल बहुत पसंद है। इन्हें 108 लाल गुरहुल का फूल अर्पित करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है तथा मोगरेका का फुल चढ़ाएं।


उसके साथ नीचे दिये हुवे 2 मंत्र का पाठ आप अपने जीवन में हमेशा करते रहे . इससे देवी मा की कृपा सदा भक्तो पर रहेगी . वो मा है ममता है . इसकी साधना से जल्दी जीवन में बदलाव आत्ता है।
“सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते “।।
“ऊँ जयन्ती मङ्गलाकाली भद्रकाली कपालिनी ।दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते” ।।


धन्यवाद आपको ये लेख पसंद होतो दुसरेके कल्याण हेतू आगे नामसहित भेजे . आपके घरमे अगर कोई दोष होतो आप हमे नीचे दिये हुवे पत्ते पर संपर्क कर सकते हो ।

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